पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२०

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रामस्वयंवर। अवध-वर्णन। (छंद चौधोला) सरजू तीर सोहावन कोसल नगर वसत अति पावन । 'निज छवि अमरावती लजावन सुरन मोद उपजावन ॥ द्वादस जोजन लंब मान तेहि जोजन त्रयं विस्तारा। कनककोट अति मोट छोट नहि बिमल विसाल वजारा ॥२॥ वसत चक्रवर्ती दसरथ जह जिमि दिवि देव-अधीसा। पालित प्रजों वृद्धि सुख पावत लाह प्रताप जगदीसा॥ वाट वाट बहु द्वार विराजत चामीकर महरावें। हाटक ठाट कपाट ठटे वर घाटन घाट सोहावें ॥१॥ सरजू-तीर हेम-सोपानन सब थल करहिं प्रकासा ॥ गुर्ज मेरु-मंदर-सम मंडित जेहि लखि दुवन निरासा॥ भिन्न भिन्न सव भौन भौन की गली न कछु संकेतू । अति विचित्र बर कनकरजत के निरमित सकले निकेतू॥१४॥ तोपन-तोम तड़प तड़िता सी गुरिंज कोट मह केतीं। घहरहिं मनहुँ मेधंगन घहरत गोला अवली लेतीं ॥ तिमि धरनाल और करनालैं; सुतुरनाल, जंजालें। गुरगुराब, रहकले भले तह लागे विपुल बयालें ॥१५॥ ऊँची अटा घटा इव राजहि छरति छटा छिति छोरें मनहुँ, स्वर्ग की लगी सोपान' रवि-वित्रामहि टोरें॥