१७२ रामस्वयंबर। तीनिहुँ अनुज समेत सखो बैठायकै ॥४३॥ ध्यंजन विविध प्रकार थार मरि ल्यायकै। सूपकार सुख पाय परोले प्रायके ॥४॥ सन्मुख बैठी सिद्धि सहित सखियान के। गारी गावत हेत स्वरूप गुमान के ॥४५॥ (दोहा) पहि विधि मिथिलापुर जुवति गारी गावत जाहि । - मंद मंद भोजन फरत, सकल बंधु मुसक्याहि ॥४॥ (चैपाई) मंजु सुरन भरि राग सहाना | लेतों तरल तान विधि नाना॥ माच्यो महा मनोहर सारा । माही सखि लखि राजकिसोरा ।। यहि विधि भोजन करि अभिरामा किय आचमनबंधुजुतरामा॥ उठि चामीकर चौकिन जाई । चैठि धेोय कर पद सब भाई ।। कही सिद्धि सों पुनि प्रभु बानी । होती बडि बिलंबाजिय जानी॥ सांझ समय पितु दरसन हेतू । जैहे मिथिलाधिप मतिसेत् ।। ताते हमको देहु रजाई । पेहि पितु जनवासे जाई ॥ रामहिं जान जानि तिहि जूना । सुन्यो सुनैना भो दुख दुना ॥ कहि न सकनि कछु बचन विवारी। रहहु लाल को जाहुसिधारी जस तसकै बोलो महरानी। करहु लाल भल जोमनमानी। चारिहु बंधु बंदि पद ताके। वाहर आये अति सुख छाके। रघुनंदन वंदन करि भूपै । चढ़ि तुरंग महं चले अनूपै।।
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