पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१८७

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रामस्थयबर । ५. उतै जमफ सब साजु भरि, शतानंद के संग। पटवायोजनपास मह, हित व्यवहार अभंग ॥३॥ (चौपाई) शतानंद सखि यो महीपा। दै मासन बैठाय समीपा॥ शतानंद बोल्या मुलपयाई । तुम इह्मण्य धन्य नृपराई यह व्यवहार विदेह पठाये । हम बरात हितपत लै भाये। स्तै सुनैना सखी पठाई । लक्ष्मीनिधि पहँ निकट वुलाई । जनवासे अव लाल सिधारी। ले भावहु लिघाय पर चारो॥ साक्ष्मीनिधि आवत लखिमजा उठ्यो अनंदित सहित समाजा। लक्ष्मीनिधि कह हे महाराजा । भेजा कुंवर कलेऊ काजा ॥ भूप वाह्यो लैजाहु कुमार या पूछा मिथिलेश दुलारे ॥ चढ़े कुंवर सब तरल तुरंगा चले सखा सब सेहत संगा॥ । राम जाय मिथिलेश द्वार में | तजे तुरंगन सुख अपार में। (दोहा) मिलि विदेद आशिष दई , लैंगे भवन तिवाय । अथा जोग भ्रातन सखन, सहित राम बैठाय ।। ४०॥ (छंद) लक्ष्मीनिधि तहँ आसुहि कुवर लियायकै। गये तुरत रनिवास पिता रुख पायकै ॥४॥ • रामहिं आवत देखि सुनैना धायकै। लै बलिहारी चूमि यदन सुख पायकै ॥४॥ मनिमंदिर महै आसुहि रोम लिवायक। .