पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१८६

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रामस्वयंघर। चारिहु कुंवर प्रमुदित उठे करि विविध हासपिलासा दिय छोरि गांठी सिद्धि सुदरि वधुन की सकुचाय । चारिहु कुवर दाऊसासुकोसहुलास सीस नवाय ॥२८॥ गवने हरत मन दृगन फेरत मनसखिन हुलास ! छलि छोनि चारहु छैल तिहि छन जोत है जनवास ॥ यहि मांति चारिह बंधु द्वारे आयगे सुख छाय । तिहि फाल मिथिलापाल संजुत लाम आयो धाय ॥२६॥ मिलि राम धारहिंधार भरतहि लपन अरु रिपुसाल। फर लोरि सय मांगे विदा सिर नाय दशरथलाल ॥ .. दिय कोहियासिप लाय उर पुनि नयन अंबु बहाय.! नृप कहो का करिये कुचर मुख जाय नहिं कहि जाय॥३०॥ भेट्यो बहुरि लक्ष्मीनिधिह प्रभु मिले सहित सनेह । .. चारिहु कुमार सवार मे उत गये नेह विदेह ॥ यहि मांति चारितु कुवर आवत भये घर जनवास : देखन वराती सवै ठाढ़े नहिं समात हुलास ॥३१॥ सिर नाय चले कुमार सबपितु की रजायस्तु पाय । हिति मिलि किये भोजन रजनि व्यंजन विशेष निकाय॥ कीन्हें सयन पयंक निज निज वरून आलस नयन । सुनिक कुमारन सयन भूपति शिया वेनहिं सयन ॥३२॥ (दोहा) सकल वराती जागते, लहे प्रमोद प्रभात । चंदोजन बिरुदावली, गाय उठे अवदात ॥३||