रामस्वयंवर। . .. (छंद गीतिका) उत भूप पहिरयो पीतपट दोन्ह्यों मुकुट पुखराज को।. पुखराज के उर हार आमा जरकसी सुखसाज को ॥ देखन हितै चारिहु सुदूलह इंद्र सम आवत भयो। दुलह सजे देखत दृगन सुख दून नृप पावत भयो ॥६३६॥ तव फह्यो वचन वशिष्ठ यहि छन भूप परछन कीजिए। दूलह-चढ़ाय तुरंग मह पुनि गमन सासन दीजिए। तव तुरत तरल तुरंग चारि सवारि साज मनीन-की। अनुपम सुछपि मुहरो लगाम ललाम दुमची जीन की॥३७॥ सांजे तुरंग निहारि चारि वशिष्ठ दूलह चारिहूँ। करवाय तिनहिं सवार छवि लखि मुनि तनहु मन वारिह। लै पानि दधि अच्छत सकुन दीन्ह्यो त्रिकुटि टिकुली भली। मानहु मयंक निसंक कीन्ह्यों अंक निज सुत बुध बली॥१३८॥ पुनि दियो दधि अच्छतन विदु विसाल भाल भुआल है। लाग्यो उतारन आरती तिहि काल होत निहाल है । जिहि नाम शत्रुजय महासिंधुर नरेश मंगाय कै। तापर रोहन किया आस्तुहि अम्बु अवक छाय ६३६॥ ने (दोहा) होत सवार . भुआल के, परयो निसानन धाव । । गुरु कौशिक को गल गज, लिय चढ़ाय तहँ राव on तर चौथोला.)...: फिस्यो जनकपुर के दिसि तुग ब्योम.फहराता।
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१७४
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