, रामस्वयंबर। ङ्केफाल्यो जातका सां सुना प अब सालबसविस्तारा ८६ सुनि मिथिलेश वशिष्ठ वचन घर पुलकित द्वगजल छायो। .जारि पानि पंकज वशिष्ठ के पद पंकज सिर-नायो। परंपरा जो है बंस की निमिकुल की मुनिराई । शतानंद को चहिय सुनावन ऐसो अवसर पाई || ६५ ॥ सो लै गनकन लग्न सुगावत कैसे ताहि बुलाऊं। ताते राजसमाज मध्य मुनि मैंही निज मुख गाऊं ॥ 'सुनि वशिष्ठ तह लगे सराहन निमिकुल की बड़ि महिमा। सुनु महीप मिथिलेश ताहि सम कोमहीप है महिमा॥८६६n . . दोहा। यतना कहत महोप के, तिहि अवसर सुख छाय। शतानंद लै गनगन, कह्यौ जनक से आय NEEL (छंद चौवाला) हाय विवाह उत्तरा फाल्गुनि यह संमत सप रो। सुनत अवधपति अरु मिथिलापति मान्या माद धनेरो॥ कियो विदेह बिनय दशरथ से पितर श्राद्ध करि लीजै । पुनि गोदान कराय कुमारन व्याह विधान करीजै ॥८६॥ अति हर्षित इक्ष्वाकुवंशमनि सुनि विदेह की बानी । कह्यो जनक से चचन पुलकि तनु देहु पिदा विज्ञानी ॥ देनं लग्यो जब बिदा जनक नृप दशरथ को सुबछाई । अवसर जानि कयौ कौशिक तप बचन हिये हरपाई CREA निमिफुल रघुकुल दोउ अति पावन महिमा कही न जाई
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१६७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।