पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१६५

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रामस्वयंबर। शतानंद पदवंदन कीन्हो जनक चरन सिर नायो॥ ८८३ ॥ उठि अनुजहि मिलिदै आशिष बहु निज आसन गहि पानी। शीरध्वज महराज कुशध्वज बैठायो मुद मानी। . कुशल प्रश्न पुनि पूछि नेह भरि पाछिल कथा वखानी । मआई अवध वरात जौन विधि लिया जथा अगवानी॥८॥ रनिवासहि रनिवास पठायो मुदित भए दोउ भाई । तिहि अवसर इक प्रतीहार कह कौशिक केरि अचाई ।। मिथिलाधिप दोर बंधु चले न शतानंद करि आगे। कौशिक पद पंकज गहि प्रनमें कर पंकज अनुरागे ॥५॥ शतानंद पुनि गाधिनंद कह हे वृद्ध विवारी। तिहि ौसर वशिष्ट मुनि आये जनकनिवास सुखारी ।। सब मिलि बंदि वशिष्ठ ब्रह्मसुत ल्याए सभा मझारी । कनकासन आसीन किए नृप जुगल महा तपधारी दा सोधि शुद्ध शुभलग्न व्याह की विश्वामित्र वशिष्?। करिकै संमत शतानंद को लिखहु होइ जो इष्टै।। इतै चक्रवर्ती प्रभात उठि करि नारायण-ध्याना। प्रातकृत्य करि मजन कीन्यों दै सजन द्विज दाना ॥८८ आयो सचिव सुदावन द्वारे द्वारप बरि जनाये। जानि विदेह मुख्य मंत्री नृप वासुहि पास बुलायो। भभिवादन फरिकै ममात्य बर को वचन कर जारी। नाथ विदेह बिनय कीन्ह्यो बस दरसन की रुचि मोरीinceen कोशलनाथ हुलसि हैसि वोल्यो देखन निमिकुलराजै ।