पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१६३

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रामस्वयंबर। से छवि देखि मग्न आनंद मह दोउ कुल के सब कोऊ । उभय उच्च सिंहासन में दो वैठे भूप समाना। - लघु सिंहासन पंच बिराजे पाँची कुवर सुजाना ॥८७३|| कोशलपति निज पानि पान दिय सहित सनेह विदेहैं। पुनि निज हाथन अतर लगाया मिथिलापति के देहैं।। "प्रतीहार आयो तिहि अवसर मुख जयं जीव सुनाई। विश्वामित्र वशिष्ठ सुनिन की दियो सुनाय अबाई ॥८७४॥ मुनि आगमन सुनत दोउ भूपति चले लेन अगवाई। फरि आगे पांचौ कुमार कह द्वार देस लौं जाई । लग्न विचार। लै दोउ मुनिनायक नरनायक सिंहासन बैठारे । सविधि दुहुँन को पूजि परसि पद सह घनिभाग्य हमारे । निमिकुल रघुकुल की समाज लखि देउ मुनि वैन उचारे। धनि कोशलपति धनि मिथिलापति को नृप लरिस तुम्हारे।। कोटिन वर्ष व्यतीत लहे तनु करहुं न अस मुद लेखे । जथा दराज समाज आज हम सम समधी दूग देखे ॥८७६॥ कहहु विवाह उछाह लखव कव अव सव भव अभिलायो। दोउ नृप कह जब लग्न सोधिए तब हैहै शिव सापी॥ का पूछह हमसे दाउ मुनिवर यह सब हाथ तुम्हारे। निमिकुलरघुकुल तुव अधीन अब नहिं सिरभारहमारे॥29 कहो. वशिष्ठ कोहि कोशलपति जनकनिवास सिधैहै ।