पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१४८

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९३२ रामस्वयंयर। सुनत खबरि धाए दोउ भाई | राजसमाज पिता ढिग आई। पिता विदेह पन किमि मायो । सुनन हेतु हम चित चायो (दोहा) सुनन कुमारन के वचन दीन्ह्यो पन मंगाय! कह्यो जाय रनिवास में दीजै लाल सुनाय ॥७८३n करिभूपति दूतन विदा कियोसभा बरखास। भरत सत्रुहन संग लै गर आपु रनिवास scen ब्रह्म मुहूरत जानि कै उठ्यो सु कोसलपाल। प्राकृत्य निरवाहि के करि मजन तत्काल ७.५|| अयप्रदानादिक कियो रंगनाथ पद बंदि । पहिरिविभूपन बसनवर वैटयोसमा अनंदि ॥७८६॥ (छंद चौवोला) मंत्रिन प्रजा महाजन सुभदन सरदारन कुलवारे । पौर जानपद सभ्य सुजानन कोसलपाल हँकारे॥ आये सफल सभा मंदिर महँ दशरथ राज जुहारे। सहित समाजन जया जोग्य तिन प्रतीहार बैठारे ॥७८७* - तव सुमंत को पटै तुरंतहि गुरु वशिष्ठ वुलवायो। राम काज को काज जानितहँ मुनिवर हरचर आयो । पद अरविंदन वंदन करिके कनकासन बैठायो । आज जनकपुर चलन चाय चित चारु निदेस सुनायो॥७८८५ अहे मुद्रत सुभ गोधूली चलन घरात हुलासा। ताते आज तीर सरजू के होय सुपास निवासा॥