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रामस्वयंयर। , धनुष भंग और जयमाल . . (कवित्त) . 'उत्तरि चला है मंद मंद उच्च मंचही ते मंदर ते माना कढ़ि आयो मृगराज है। माना महामत्त मंद चलत मतंग मग, मूर्तिमान मंडयो माना वीर रस-राज है। भूमि-भरतारन को तारन सो तेज हरी आवत उदैगिरि ते मानौ दिनराज है। काज करिबे को मन लाज मरी नयनन में राजन समाज मध्य राजै रघुराज है ॥ ६६० ॥ (दोहा) छटो छवीलो साँवरा कोसल-राज-किसोर। मत्त मतंगज गवन करि चलो जात धनु-ओर ॥ ६६१ ॥ झांकि झरोखन ते तहाँ जनक-राज-पटरानि । सखी सयानि बुलाय ढिग वोली विस्मित बानि १६६२॥ - (सचैया) येहो सखी अवधेस-कुमार बड़ो सुकुमार लगै सुचि लोना। कौसिला-चारो तथैव हमारी बिलोकि कै कोई करै नहि टोना । तू चलिक रघुलाल के भाल थिसाल में दैदै सुनील डिठोना ॥ काज फियो मुनि कोरघुराज पै मोहितो लागै मराल सेछिना। (दोहा)
- सुनि जानकि-जननी-वचन बोली सखी सुजानि।
देवि मोरि दिनती सुना मन की तजहु गलानि ॥ ६६४॥