. [११] आश्विन मास भर रामलीला होती है। वांधवनरेश ने भी यह लीला देखी और काशिराज के कहने से, जिन्हें यह पित- भाव से मानते थे, यह काव्य तैयार किया । इस ग्रंथ में वाल्मीकि की कथा के अनुसार इन्होंने राम-जन्म से स्वयंवर तक की लीला बहुत विस्तार से लिखी है और सीताहरणसे राज्याभिषेक तक की कथा बहुत संक्षेप में लिखी है। ऐसा करने का कारण आपने स्वयं यों लिखा है- मैं असमर्थ नाथ-दुखगाथा गावन में सब भाँती। विरह विपत्ति व्यथा वरनन में रसनारहि रहि जाती॥ जद्यपि सेतुबंध लंकापति-विजय विदित तिहुँ लोका। . विपिन-गमन दशरथकुमार को उपजावत अति सोका। इनकी राम पर कैसी भक्ति थी यह इन पंक्तियों से प्रकट होती है। यह ग्रंथ दो वर्ष में सं० १९३४ वि० की पूर्णिमा को पूर्ण हुआ था। यह ग्रंथ इनके अन्यान्य ग्रंथों से अधिक उत्तम है और इसकी कविता भी अधिक मनोहर और प्रौढ़ है। इसमें इन्होंने नगर, वाटिका, बारात आदि का बहुत अच्छा वर्णन दिया है जो अन्य कवियों के ग्रंथों में कम मिलता है। इनके इस ग्रंथ के अधिक प्रचार न होने का मुख्य कारण रामचरितमानस का अधिक प्रचार है; और दूसरे यह कि और लीलाओं के अभाव के साथ रामवयंवर तक की • लीला का बहुत ही विस्तार हो गया है। • इसी दूसरे कारण को मिटाने के लिये रामस्वयंवर का
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