पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/११

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. १९९१ वि०में इनके पिता की मृत्युपर इन्हें राजगद्दी मिली । सं० १४ वि० के बलवे में इन्होंने भारत सरकार की अच्छी सहा. यता की थी जिसके उपलक्ष में इन्हें सोहागपुर और अमरकंटक के परगने मिले थे और जी. सी. एस. आई. की पदवी प्राप्त हुई थी। इन्हें दत्तक लेने का अधिकार और १६ ताप को सलामो भी प्रदान की गई थी। इनकी सं० १३० वि० में मृत्यु हुई और इनके उत्तराधिकारी महाराज वकट रमणसिंह जीहुरे जिनकी अवस्था उस समय तीन वर्ष की थी। सं० १५२ वि० में इन्हें पूरा राज्याधिकार प्राप्त हो गया। दो वर्ष के अन- न्तर अकाल के सुप्रबंध के उपलक्ष में भारत-सरकार ने इन्हें जी. सी. एस.आई की पदवी प्रदान की । सं० १७ वि में इनकी मृत्यु हो जाने पर युवराज गुलाबसिंह सेवा की गद्दी पर सुशोभित हुए। महाराज रघुराजसिंह ने कविता के लिए अपना कोई उपनाम नहीं रखा था। ये कभी कभी अपने नाम का एक अंश 'रघुराज' छंदों में व्यवस्त करते थे। इनके प्रथम ग्रंथ का ऊपर उल्लेख हो चुका है। दूसरी पुस्तक 'जो इन्होंने २७ वर्ष की अवस्था में लिखी थी, रुक्मिणी-परिणय नामक काव्य है इसकी कविता भी अच्छी है और इसमें कई रसों का समा- वेश किया गया है। उदाहरणार्थ एक पद्य देखिए- चरखा अरु सीतहु आतप को निसि द्यौस सह सरही में खरे कहुँ सूखिहू जात, कहूँ हरियात, रहैं जलजात या ध्यान धरे ॥ Tr