पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/९८

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। लदार ( ४८ ) रघुनाथ कहेउ अब काहि हनों। त्रैलोक्य कॅप्यो भय मान घनो ॥२२०॥ दिग्देव दहे बहु बात बहे। 3 भूकंप भये गिरिराज ढहे ॥ आकास विमान अमान छये । ॐ हा हा सबही यह शब्द रये ॥२२१॥ [शशिवदना छद] in परशुराम-जग गुरु जान्यो । त्रिभुवन मान्यो । मम गति मारौ । हृदय विचारौ ॥२२२॥ [दो०] विषयी की ज्यों पुष्पशर, गति को हनत अन ग । रामदेव त्यौंहीं कियो, परशुराम गति भग ।।२२३॥ Fac Sini [चतुष्पदी छद ] सुर पुरी गति भानी सासन मानी भृगुपति को सुख भारो। आशिष रसभीने सब सुख दीने अब दसकठहि मारो ॥२२४॥ [दो०] सोवत सीतानाथ' के, भृगुमुनि दीन्हीं लात । भृगुकुलपति की गति हरी, मनो सुमिरि वह बात।।२२५।। [सवैया] ताडका तारि सुबाहु सँहारि कै गौतम नारि के पातक टारे । चाप हत्या हर को हँसि कै तब देव अदेव हुते सब हारे ॥ सीतहि ब्याहि अभीत चल्यौ गिरि गर्व चढ़े भृगुनद उतारे । श्रीगरुड़ध्वज को धनु लै रघुन दन औधपुरी पगुधारे ॥२२६॥ (१) सोतानाथ = विष्णु।