पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/९७

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( ४७ ) वामदेव' तब आपुन आये। राम देव दोऊ समुझाये ॥२१५।। [दो०] महादेव को देखि के, दोऊ राम विसेस । कीन्हों परम प्रनाम उन, आसिस दियो असेस ॥२१६।। [चतुष्पदी] महादेव-भृगुन दन सुनिए मन महँ गुनिए रघुन दन निर्दोपी। 2. निजु' ये अविकारी सब सुखकारी सबही विधि सतोषी। एकै तुम दोऊ और न कोऊ एकै नाम कहायो । आयुर्बल खूट्यौ धनुष जो टूट्यौ मैं तनमन सुख पायौ२१७ न [पद्धटिका छद] तुम अमल अनत अनादि देव । नहिं वेद बखानत सकल भेव ॥ पद सबको समान नहिं वैर नेह । सव भक्तन कारन धरत देह ।।२१८॥ अव आपनपौ पहिचानि विप्र । सब करहु आगिला कान छिन । तब नारायन को धनुख जानि । भृगुनाथ दियो रघुनाथ पानि ॥२१९॥ [मोटनक छंद] नारायन को धनुवान लियो । ऐच्यो हँसि देवन मोद कियो । (१) वामदेव = महादेव । (२) निजु = निश्चय । अति.