पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/९४

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( ४४ ) [विजय छौंद] "भूतल के सब भूपन को मद भोजन तो बहु भॉति कियोई । मोद सों तारक-नद को मेद पछ्यावरि पान सिरायोहियोई। खीर खडानन को मद केसव सो पल मे करि पान लियोई। राम तिहारेइ कठ को सोनित पान को चाहे कुठार कियोई" ॥२०४।। [त्रोटक छद] लक्ष्मण-जिनकोहि अनुग्रह वृद्धि करै। र तिनको किमि निग्रह चित्त परै॥ १० जिनको जग अच्छत सीस धरै। ५.०९. -तिनको तन सच्छत कौन करै ।।२०५॥ ४ [विशेषक छ द] परशुराम-हाथ धरे हथियार सबै तुम सोभत हो। . मारनहारहिं देखि, कहा मन छोभत हो। 31 छत्रिय के कुल कै किमि बैनन दीन रचौ । कोटि करो उपचार न कैसेहु मीचु बचौ ॥२०६।। लक्ष्मण-छत्रिय है गुरु लोगन के प्रतिपाल करें । भूलिहु तो तिनके गुन औगुन जी न धरै ।। (१) पछ्यावरि = शिखरन । (२) निग्रह = दौंड । २१०६ 17 AM