... 1 सलीम की मित्रता के वश अबुलफजल को युद्ध क ालय ललकार कर मार डाला। इस पर नाराज होकर जब अकबर ने इद्रजीत. सिंहदेव पर एक करोड रुपया जुर्माना कर दिया तो केशव ही ने दिल्ली जाकर बीरवल की सहायता से उसे माफ कराया था। केशव के विस्तृत साहित्यिक ज्ञान की बात ही क्या कहनी है। राजा इद्रजीतसिंह ने केशव को २२ गाँव जागीर में दिए थे जिनमे से झॉसी से तेरह मील दक्षिण की ओर 'फुटेरा' गाँव की जमींदारी अब तक उनके वशजों के पास है। इद्रजीतसिह के अनुग्रह से केशवदास को जो विभव प्राप्त था वह किसी राजा के विभव से कम न था। इसी से कृतज्ञता प्रकट करते हुए केशव ने कहा है-'भूतल को इद्रजीत राजै जुग जुग केसोदास जाके राज राज सो करत है' ( कविप्रिया, ४-२१)। स० १६२ में अकबर के मर जाने पर जहाँगीर बादशाह हुआ। उसने वीरसिंह को सारे बु देलखड का पट्टा लिख दिया। वीरसिंह और रामशाह मे प्रोडछे की गद्दी के लिये ठन गई। हारकर रामसिंह दिल्ली चले आए। वीरसिंह गद्दी पर बैठे। वीरसिह ने भी केशव का आदर किया, यद्यपि उनका जो मान इद्रजीतसिंह के समय मे था, वह उन्हे शायद ही प्राप्त हुआ हो। वीरसिंह का यशोगान उन्होने वीरसिहदेव- चरित मे किया है। अत मे ऐसा भी समय आया कि केशव केसनि अस करी जस अरिहू न कराहिँ । चद्रवदनि मृगलोचनी, वावा कहि कहि जाहिँ ।
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