पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/८९

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करि क्रतु' रखवारी गुरु सुखकारी गौतम की तिय सुद्ध करी। जिन रघुकुल मड्यो हरधनु खड्यो सीय स्वयबर माँझ बरी ॥१८४॥ परशुराम [ दो०] हर हू होतो दड द्वै, धनुष चढावत कष्ट । 17- देखो महिमा काल की, कियो सो नरसिसु नष्ट ॥१८५॥' [विजय छद] ... बोरों सबै रघुबस कुठार की धार में बारन बाजि सरत्थहिं । बान की वायु उडाइ कै लच्छन लच्छ करौं अरिहा समरत्थहि ।। रामहिं बाम समेत पठै वन कोप के भार मैं पूँजी भरत्थहिं । जो धेनु हाथ धरै रघुनाथ तो आजु अनाथ करौं दसरत्थहिं।।१८६।। [सो०] राम, देखि रघुनाथ, रथ ते उतरे वेगि दै। गहे भरत को हाथ, आवत राम विलोकियो ।।१८७॥ [दडक छद] परशुराम-अमल सजल घनस्याम वपु केसौदास चद्रहू ते चारु मुख सुखमा को ग्राम है कोमल कमल-दल दीरघ विलोचननि सोदर समान रूप न्यारो न्यारो नाम है। बालक विलोकियत पूरन पुरुषु, गुन । मेरो मन मोहियत ऐसो रूप धाम है। (१) क्रतु = यज्ञ।