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केशव लजात जलजात जातवेद१ . अोप, जातरूप बापुरो विरूप सो निहारिए। मदन निरूपम निरूपन, निरूप भयो, चद बहुरूप अनुरूपकै विचारिए । सीताजू के रूप पर देवता कुरूप , को हैं ? रूप ही के रूपक तौ वारि वारि डारिए । १७२ ।। [गीतिका छंद] श्री सोभिजै सखि सुदरी जनु दामिनी वपु मंडिकै । घन स्याम को जनु सेवहीं जड मेघ-अोधन छडिकै ॥ .. इक अ ग चर्चित चारु न दन चद्रिका, तजि चद को। जनु राहु के भय सेवहीं रघुनाथ आनंदकंद को ॥१७३॥ मुख एक है नत, लोकलोचन लोल लोचन को हरे। जनु जानकी सँग सोभिजै सुभ लाज देहन को धरे ॥ "तहँ एक फूलन के बिभूखन एक मोतिन के किये । जनु छीरसागर देवता तन छीर छीटनि को छिये ॥१७४।। [सो०] पहिरे वसन सुरग, पावक युत स्वाहार मनो। - सहज सुंगधित अग, मानो देवी मलय की ॥१७५॥ २. ल (१) जातवेद = अग्नि । (२) जातरूप = सुवर्ण । (३) स्वाहा = अग्नि ( प्रावकः, की स्त्रा।