के समय मे कृष्णदत्तजी अोडछे आकर बस गए थे। शीघ्र. बोध नामक ज्योतिष ग्रथ के रचयिता इन्हीं के पुत्र काशीनाथ थे। जान पडता है कि काशीनाथ को सतमत की विशेष जानकारी थी (अशेप शास्त्र विचारि के जिन जानियो मत साध)। विरक्ति-सबंधी ज्ञान, जो विज्ञानगीता से प्रकट होता है, केशव को इन्हीं के ससर्ग से प्राप्त हुआ होगा। काशीनाथ के बलभद्र, केशवदास और कल्याणदास तीन पुत्र हुए। तीनो के तीनों कवि थे। बडे भाई बलभद्र ने 'नखशिख' नामक साहित्यिक ग्रंथ का प्रणयन किया और सबसे छोटे भाई कल्याण- दास की बहुत सी स्फुट रचनाएँ प्राप्त है। परतु इसमे सदेह नहीं कि मझले भाई केशव अपने परिवार भर मे सबसे बडे विद्वान् और कवि हुए। केशव का जन्म सं० १६१८ मे प्रोडछे ही मे हुआ। इनकी कवित्व-शक्ति और विद्वत्ता के कारण ओडछे के राज-दरबार मे इनका बड़ा मान हुआ। मधुकरशाह के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र रामशाह (दूलहराम) ढलती उमर मे प्रोडछे की गद्दी पर बैठे। उन्होंने सारा राज-काज अपने छोटे भाई इद्रजीतसिंह के ऊपर छोड दिया। इ द्रजीतसिह वडे गुणग्राही थे। उन्होंने केशव को केवल राजकवि ही का पद प्रदान न किया बल्कि उनको गुरु और मत्री के तुल्य भी माना। राजा इंद्रजीत की श्रद्धा ने अनुचित आलबन नही ढूँढ़ा था, अवसर पड़ने पर केशव अपने बुद्धि-बल से इस बात का प्रमाण देते रहे। एक बार रामशाह के सातवें भाई वीरसिंहदेव ने
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