प्रस्तावना... केशवदास जाति के सनाढ्य ब्राह्मण थे। उन्होंने राम- चंद्रिका में स्थल स्थल पर सनाढ्यों की प्रशसा की है। राम .__ के राज्याभिषेक के समय उन्होंने प्रार्थना केशवदास का जीवन-वृत्त । " करते हुए यक्षादिकों से राम के प्रति कहलाया है कि आपने "प्रगट सकल सनौढियन के प्रथम पूजे पाइ।" लवणासुर-वध के अवसर पर जब देवताओं ने प्रसन्न होकर शत्रुघ्न से वर मांगने को कहा तो सनाढ्यों की प्रशसा करते हुए उन्होंने यह वर माँगा- सनाढ्य वृत्ति जो हरै । सदा समूल सा जरै। अकालमृत्यु सो मरै । अनेक नर्क मा परै। सनाढ्य जाति सर्वदा । यथा पुनीत नर्मदा । भजै, सजे जे सपदा । विरुद्ध, ते असपदा । केशवदास पडित-कुल में पैदा हुए थे। इनके पिता का नाम काशीनाथ मिश्र था और पितामह का कृष्णदत्त मिश्र । पं० कृष्णदत्त को उन्होंने 'जगत्प्रसिद्ध पडितराज' कहा है ( कृष्णदत्त प्रसिद्ध हैं महि मिश्र पडितराव), और काशीनाथ की गणेश से तुलना की है (गणेश सो सुत पाइयो बुध काशि- नाथ अगाध )। केशव के पूर्वजो का निवासस्थान डीग कुम्हेर था, जो व्रजमडल में है। परतु महाराज मधुकरशाह
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