दो०] पूरण यज्ञ भयो जहीं, जान्यो विश्वामित्र । धनुपयज्ञ की शुभ कथा, लागे सुनन विचित्र ॥६५॥ विप्र-कथित स्वयंवर-कथा खडपरस' को सोभिजे, सभामध्य कोदंड । | मानहुँ शेष (अशेष धर, धरनहार) बरिवड ॥६६।। [सवैया ] गोभित मंचन की अवली गजदतमयी छवि उज्ज्वल छाई । श मनौ वसुधा मे सुधारि सुधाधरमडल मडि जोन्हाई।7 सासहँ केशवदास विराजत राजकुमार सबै सुखदाई। . (वन स्यों जनु देवसभा शुभ सीयस्वयवर देखन आई ॥६॥ सो०] सभामध्य गुणग्राम,-- बदी सुत द्वै सोभहीं। 3"सुमति विमति यह नास, राजन को वर्णन करै ॥६॥ उमति [दो०] को यह निरखत आपनी, पुलकित बाहु विशाल । सुरभि स्वयवर/जनु करी, मुकुलित शाख रसाल ?॥६९॥ वमति-सो०] जेहि यश-मिल मत्त, चचरीक-चारण फिरत । दिसि विदसन अनुरक्त, सो तौ मलिकापीडनृपः ॥७०|| [मति-दो०] जाक सुख मुख वोस ते, वासित होत दिगत । । सो पुनि कहु यह कौन नृप, शोभित शोभ अन त ? ॥१॥ (१) खडपरस = महादेव । (२) स्यो = सहित । (३ सुरभि = सत। (४) मलिकापीडनृप = मलिक नामक जाति अथवा पहाडी देश का शिरोभूषण राजा; मल्लिका पुष्प से निर्मित शिरोभूषण जिसका वह राजा। (५) सुखमुख = सहज ।
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