पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/६५

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HI ( १५ ) [ नाराच छद] - विचारमान ब्रह्म, देव अर्चमान मानिए । अदीयमान दुःख, सुःख दीयमान जानिए । अदडमान दीन, गर्व दडमान भेदवै । अपट्ठमान पापग्रथ, पट्ठमान वेदवै ।।६०।. [चचला] रतिबे को यज्ञथल बैठे वीर सावधान ।। होन लागे होम के जहाँ तहाँ सबै विधान । भीम भाँति ताड का सो भग लागि कन आइ । ५ '.. बान तानि, राम पैन नारि जानि छाँड़ि जाइ ॥६१॥ ऋषि-[सो०] कर्म करति यह घोर, विप्रन को दसहू दिशा । मत्त सहस गज जोर, नारी जानि न छॉडिए ॥३२॥ [दो०] द्विजदोषी न विचारिए, कहा पुरुष कह नारि । राम विराम न कीजिए, बाम ताड़ का तारि ॥६३॥ ताड़का-सुबाहु-वध) हवा [मरहट्टा छद] यह सुनि गुरुबानी धनु गुन तानी, जानी द्विज दुखदानि । ताडु का सँहारी, दारुणा, भारी, नारी अति बल जानि ॥ "मारीच बिडार यो.जलधि उतारयो, मारयो सबल सुबाहु । देवनि गुन पो, पुष्पनि बो, हो अति सुरनाहु ॥६४।।