पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/६२

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( १२ । मुख ते कछु बात न जाय कही। अपराध विना) ऋषि देह दही ॥४६॥ - राजा-अति कोमल केशव बालकता। । बहु दुष्कर राक्षम-घालकता । हमहीं चलिहैं ऋषि संग अबै । सजि सैन च चतुरग सबै ॥४७॥ [षट्पद )

वश्वामित्र-जिन हाथन हठि हरषि हनत हरिणी रिपु-न दन,। तिन न करत सहार कहा मदमत्त गयदन । जिन बेधत सुख लक्ष - लक्ष ) नृपकुँवर कुँवरमनि। .. तिन बाणनि बाराह बाघ मारत नहिं सिंहनि । नृपनाथनाथ दशरथ सुनिय, अकथ कथा जनि मानिए । मृगराजराजकुलकलश अब, बालके वृद्ध, जानिए ॥४८॥ मोदक छंद] राजा-मैं जो कह्यो ऋषि देन, सो लीजिय। . काज करो, हठ भूलि न कीजिय ।। प्राण दिये, धन जाहिं दिये सब । केशव राम न जाहि दिये अब ॥४९॥ ऋषि–राज तज्यो धन धाम तज्यो सब । नारि तजी, सुत सोच तज्यो तब ।। आपनपौ जो तज्यो, जगबंद है। ? - सत्य न एक तज्यौ हरिचंद है॥५०॥