इस संस्करण मे टिप्पणियाँ और भी बढा दी गई है। यथास्थान प्रसग-गर्भ कथाओं की ओर भी सकेत कर दिया गया है। - इस सस्करण में एक छोटी सी प्रस्तावना भी जोड दी गई है, जिससे आशा है कि विद्यार्थियों और साधारण पाठको की कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। . स्वर्गीय लालाजी केशव के बडे भक्त थे। उनके 'प्रेत- काव्य' के उद्धार का कार्य वही आरभ कर गये थे। उन्हें उनके अच्छे अच्छे ग्रथों पर सुदर और सरल टीकाओं का अभाव खटकता था, जैसा कि पहले सस्करण की भूमिका मे उन्होने प्रकट किया है। अपनी इहलोक-लीला सवरण करने के पहले आप रामचद्रिका और कविप्रिया पर उत्तम टीकाएँ प्रस्तुत कर अपने पांडित्य का प्रसाद हमे दे गये। केशव के ग्रथों के सुदर सुदर अशों का उन्होंने केशव-पचरत्न से सग्रह किया। परतु उनके बाद अब...यह उद्धार-कार्य बिलकुल बद सा हो गया है। यदि केशव के शेप ग्रंथों का भी उद्धार हो जाय तो लालाजी की स्वर्गस्थित आत्मा को बडा सतोष होगा। गणेश चतुर्थी, । । १९९० पीतांबरदत्त बड़थ्वाल तीसरे संस्करण की भूमिका 0 छापे की जो गलतियाँ दूसरे सस्करण में रह गई थीं, वे इस संस्करण में सुधार दी गई हैं। पी० द० ब०
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