लेखनी के मुख पर आ जाना स्वाभाविक था। परतु राम- चंद्रिका में इससे आगे बढ़कर संस्कृत काव्यों के कई प्रशों का शब्दशः अनुवाद भी मिलता है। ऐसे अधिकांश अंश कादंबरी से लिए गए है। नगर, आश्रम इत्यादि के जितने लबे लबे वर्णन मिलते हैं, उन सबमे कादंबरी की छाया है। सवादों में प्रसन्नराघव तथा हनुमन्नाटक से कम अंश नहीं लिया गया है। भास के बालचरित और कालिदास के रघुवंश आदि काव्यों से भी कुछ सहायता ली गई है। सस्कृत से भाव लेना बुरा नहीं है। परंतु कहीं कहीं पर केशव ने उनको बिना ग्रंथ के उपयुक्त बनाए ही ले लिया है जिससे वे सौंदर्य-वृद्धि करने के बदले उसमें बाधा उपस्थित करते हैं। .. छंद का कविता के साथ बहुत घनिष्ठ सबध है। बिना छद के भी कविता संभव है, किंतु साधारण व्यवहार में छंद के ही संयोग में कविता का दर्शन हुआ करता है। इसी से साधारण बोलचाल मे बहुधा गलती से पद्य और कविता शब्द एक दूसरे के पर्याय के रूप मे गृहीत होते हैं। रामचंद्रिका में छंद की जो अनेक- रूपता दिखलाई देती है, वह शायद ही और किसी काव्य में मिले। हम उसे ऊपर छदों का अजायबघर कह आए है। जिन छंदों के नाम कहीं नहीं सुनाई देगे वह उसमे मिलेंगे। मोटनक, सोमराजी, कलहंस, चित्रपदा, निशिपालिका आदि छंद-जगत् के अजनवी से अजनवी नाम उसमें दिखाई पड़ते हैं। छद
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