छोडा न जाय और सरलता ही के लिये कोई अश . या जाये। पहले संस्करण मे धनुष-यज्ञ के अवसर पर रावरख बाणासुर-सवाद छूट गया था। परंतु यह सवाद केशव ई धनुष-यज्ञ की विशेषता है इसलिये उसका सक्षेप/ भी इस सस्करण मे रख दिया गया है। केशव ने रामचंद्रिका के रूपक को आगे बढ़ाते हुए रामा चद्रिका के सर्गों का 'प्रकाश' नाम रखा था।/ परतु स्वर्गी लालाजी ने प्रकाशों को हटाकर कथा को काडों में विभक्त का दिया है। असल मे वाल्मीकि की रामायण का विद्वत्समार्च के ऊपर इतना प्रभाव जमा है कि उनके 'रामायण' और 'काडो) के सामने तुलसीदास के 'रामचरितमानस' और 'सोपान आदि नाम भी न चलने पाये। तब याद केशव के प्रकाश को उनके कांडों के लिये जगह छोडनी पडे तो कोई बडी बाद नहीं। जन साधारण के मन मे राम-कथा स्वभावतः इन्ह विभागों में विभक्त है। प्राचीन काव्यों का पाठ स्थिर करने का कार्य बडा कठिन है। आजकल मूल प्रतियों का मिलना दुःसाध्य है। फि भी अन्वेषणकर्ता विद्वानों के मत के अनुकूल उचित पाठ रखन का इस सस्करण मे प्रयत्न किया गया है। केशव का काव्य जटिल है। इसलिये पाद-टिप्पणि । में कठिन अशों का स्पष्टीकरण आवश्यक समझा गया है| वु देलखडी शब्दो का अर्थ स्वर्गीय लालाजी ने दे दिया था
पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ २ ]