पुस्तक मे आगे पढते चले जाइए, सारा वर्णन चमत्कार से परिपूर्ण मिलेगा। पर इनकी कल्पना मस्तिष्क की उपज मात्र है, हृदय-जात नहीं। इसी से कभी कभी इनकी कल्पना ऐसे दृश्यों को अलकार रूप मे सामने लाती है जिनसे प्रस्तुत वस्तु का असली स्वरूप कुछ भी प्रत्यक्ष नहीं होता, पर जिसे प्रत्यक्ष करना अलकारों का मुख्य उद्देश्य है। प्रस्तुत और अप्रस्तुत वस्तु के बीच केवल किसी बात में बाहरी समानता ही नहीं होनी चाहिए, उन दोनों को एक समान भावनाओं का उद्भावक भी होना चाहिए। यदि आप किसी मुलायम कपड़े की श्वेतता की उपमा देते हुए बरसात की धुली हड्डी से उसकी समानता करना चाहे तो कहाँ तक उसके प्रति लोगों की रुचि को आक- र्षित कर सकेगे ? हॉ, मक्खन के साथ उसकी समानता करने से अवश्य यह काम हो सकता है। 'मक्खनजीन' नाम रखने- वाले ने अलकार की सब आवश्यकताओं का ध्यान रखा है। मक्खन कोमल और श्वेत होने के साथ साथ प्रिय वस्तु है जब कि हड्डी कठोर तो है ही, घृणा भी पैदा करती है। केशव का बालारुण सूर्य को देखकर यह सदेह करना कि- कै श्रोणितकलित कपाल यह किल कपालिका काल को। हड्डीवाली उपमा ही के समान है। ___ इसके साथ सदेहालकार के जो और पक्ष हैं और जो एक उत्प्रेक्षा है वे इसके विरोध में कितने मनोरम लगते हैं-
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