केशव के चरित्र-चित्रण की रेखाएँ स्पष्ट नहीं हैं। परंतु इसका यह अभिप्राय महीं कि वे विशिष्टता-शून्य है। कहीं कहीं पर उन्होंने इस सबध में अन्य रामचरितकारों से विवेक की मात्रा अधिक दिखलाई है।
उन्हे बालि-बध का अनौचित्य खटका था। उन्होंने उस पर चूना पोतने का प्रयत्न नहीं किया है, यह देखकर बडा आनद होता है। एक प्रकार से स्वय राम के मुख से उन्होंने उमका अनौचित्य स्वीकार कराया है और कृष्णावतार के समय उससे उसका बदला लेने को कहा है-
'यह सॉटो लै कृष्णावतार । तब बहौ तुम ससार पार ॥ भरत के सबध मे उनके राम की धारणा भी स्वाभाविक है। यद्यपि राम को भरत से कोई द्वेष नहीं है, वे खुशी से उनके लिये राज्य छोडकर वन जाने लगते हैं परतु सर्वज्ञ की भाँति वे भरत को बिल्कुल निःस्पृह नहीं समझते। उन्हे स्वभावतः भरत पर सदेह हो जाता है, लक्ष्मण से वे कहते हैं-
आइ भरत्थ कहाँ धौ करै, जिय भाय गुनौ । जौ दुख देइँ तो लै उरगौ, यह बात सुनौ ।।
जब चित्रकूट में ससैन्य भरत को आते देख लक्ष्मण को क्रोध हुआ और उन्होंने भरत का मार डालने की इच्छा प्रकट की तो राम ने भरत की तरफ से उनका दिल साफ करने का प्रयत्न नहीं किया। स्पष्ट ही स्वय उनका दिल भरत से सशक था । उनकी शका तब मिटी जब उन्हे भरत