( २३ ) लक्ष्मण को जाना पड़ा। वे सीता को अभिमत्रित रेखा के बाहर आने की मनाही कर चले गए। कपटयोगी रावण को भिक्षा देने के लिये सीता ने लक्ष्मण की शिक्षा का उल्लघन किया और वे रावण से हरी गई। तब वे बिलखने लगीं- हा राम, हा रमन, हा रघुनाथ धीर । लकाधिनाथ वश जानहु मोहिं वीर ॥ हा पुत्र लक्ष्मण छोड़ावहु वेगि मोहीं। मार्तडवश-यश की सब लाज तोहीं। ___ यदि केशव मनोवृत्तियों से परिचित होते तो इस अवसर पर इस अपील में उनकी सीता अपना हृदय खोलकर रख देती; अपनी निस्सहाय अवस्था का जिक्र करतीं, अपने हर्ता की क्रूरता का बयान करतीं, उसे कोसतीं, केवल लकाधिनाथ कहकर न रह जातीं; लक्ष्मण को बुरा-भला कहने तथा उनका आदेश न मानने के लिये अपने आपको धिक्कारतीं, अपने पर व्यग्य छोडतीं। पर इस तार खबर मे क्या है ? और कहाँ तक आत्मीयता झलकती है ? 'रमन' और 'पुत्र' को छोडकर कौन बात ऐसी है जिसको आपत्ति मे पडी हुई स्त्री दूसरे के प्रति नहीं कह सकती ? राम-कथा में हृदयस्पर्शी स्थलों की कमी नहीं है जिनमे कवि अपनी भावुकता के विकास का प्रकाश दिखला सके। वाल्मीकि, तुलसी, आदि केशव से पहले के कवियों ने ऐसे स्थलों का खूब उपयोग किया है। परतु केशव उनसे उचित लाभ नहीं उठा सके। तुलसी के राम अयोध्या-
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