( २२ ) है। परंतु यह पागलपन मानसिक अव्यवस्था का फल नहीं होता, बल्कि प्रियाभिमुख अत्यंत सजग राग का निकास है। हनुमान राम की मुद्रिका साथ ले आए थे जिसको दिखाकर उन्होंने सीता को विश्वास दिलाया कि मैं राम का ही दूत हूँ। उस मुंदरी के प्रति सीताजी के इस भावपूर्ण कथन में भी यही बात देखने को मिलती है- श्रीपुर मे वन मध्य हौं, तू मग करी अनीति । कहि मुंदरी अब तियन की को करिहै परतीति ? हनुमान के वेग से लका मे कूदने का दृश्य भी उन्होंने एक पक्ति में बहुत अच्छी तरह चित्रित किया है। उस समय ऐसा जान पड़ा, मानो आकाशरूपी पत्थर पर लकीर सी खिंच गई हो-लीक सी लिखत नभ पाहन के अंक को।। परतु यह निरीक्षण भी इतना पूर्ण नहीं था कि बहुत दूर तक केशव की सहायता कर सकता। कई ममेस्पर्शी घटनाओं का भी उन्होंने ऐसा वर्णन किया है जिससे मालूम होता है कि मनुष्य की मनोवृत्तियों को वे बहुत ही कम समझ पाए थे। यहाँ पर एक ही उदाहरण देगे। रामचद्र कपट-मृग को मारने गए थे। 'हा लक्ष्मण' शब्द सुनकर सीता ने सोचा कि राम लक्ष्मण को, सहायता के लिये, बुला रहे है; पर लक्ष्मण ने सीता को अकेली छोडना ठीक नहीं समझा तब- 'राजपुत्रिका कह्यो सो और को कहै, सुनै ।'
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