पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२४८

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कौन यहै घटिहैं अरि घेरे।
नाहिंन हाथ शरासन मेरे॥
नेकु जही दुचितो चित कीन्हों।
सूर बड़ो इषुधी[१] धनु दीन्हों ॥२१७॥
लै धनु बाण बली तब धायो।
पल्लव ज्यौं दल मारि उडायो॥
यौं दोउ सोदर सैन सँहारै।
ज्यौं वन पावक पौन विहारै॥२१८॥
भागत हैं भट यौं लव आगे।
राम के नाम ते ज्यों अघ भागे॥
यूथप यूथ यौं मारि भगायो।
बात बड़े जनु मेघ उडायो॥२१९॥

[सवैया]

अति रोष रसै कुश केशव श्रीरघुनायक सों रणरीति रचैं।
तेहिं बार न बार भई बहु बारन खड्ग हनै न गनै विरचै[२]
तहँ कुंभ फटै गजमोती कटैं ते चले बहु श्रोणित रोचि रचै।
परिपूरण पूर[३] पनारेन तै, जनु पीक कपूरन की किरचै॥२२०॥

[नाराच छंद]

भगे चपे चमू चमूप छोडि छोडि लक्ष्मणै।
भगेरथी महारथी गयंद वृद को गणै॥


  1. इषुधी= तरकस।
  2. विरचे= क्रुद्ध होते हैं।
  3. पूर= धार।