पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२३४

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करी जो छॉह एक हाथ एक बात बास सौ।
सिंच्यो शरीर बीर नैननीर ही प्रकाश सौं॥१४॥
[रूपमाला छंद]
राम की जपसिद्धि सी सिय को चले बन छाँड़ि।
छाँह एक फनी करी फन दीह मालनि माँडि॥
बालमीकि विलोकियो वन-देवता जनु जानि।
कल्पवृक्षलता किधौं दिवि ते गिरी भुव आनि॥१४६।॥
सींचि मंत्र सजीव जीवन जी उठी तेहि काल।
पूछियो मुनि कौन की दुहिता बहू अरु बाल॥
सीता--हौ सुता मिथिलेश की दशरथपुत्र-कलत्र।
कौन दोष तजी, न जानति, कौन आपुन अत्र?॥१४७॥
मुनि--पुत्रिके सुनि मोहिं जानहि बालमीकि द्विजाति।
सर्वथा मिथिलेश को गुरु सर्वदा शुभ भाँति॥
होहिगे सुत द्वै सुधी पगु धारिए मम ओक।
रामचद्र छितीश के सुत जानिहै तिहुँ लोक॥१४८॥
सर्वथा गुनि शुद्ध सीतहिं लै गये मुनिराइ।
आपनी तपसान की शुभ सिद्धि सी सुख पाइ॥
पुत्र द्वै भये एक श्री कुश दूसरो लव जानि।
जातकर्महि आदि दै किय वेद भेद बखानि॥१४९॥
[दो०] वेद पढ़ायो प्रथमही, धनुर्वेद सविशेष।
अस्त्र-शस्त्र दीन्हे घने, दीन्हे मत्र अशेष॥१५०॥


(१) बात = हवा। (२) बास = वस्त्र।