पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२०७

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[तोटक छंद]
राम--हनुमत बली तुम जाहु तहाँ।
मुनि-वेष भरत्थ बसंत जहाँ॥
ऋषि के हम भोजन आजु करै।
पुनि प्रात भरत्थहिं अक भरै॥१७४॥
(इति लका काड)