पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२०३

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महादेव के नेत्र की पुत्रिका सी।
कि सग्राम की भूमि मैं चडिका सी॥
मनौ रत्नसिंहासनस्था सचो है।
किधौं रागिनी राग पूरे रची है॥१५६॥
गिरापूर मे है पयोदेवता सी।
किधौं कज की मजु शोभा प्रकासी।
किधौं पद्म ही मैं सिफाकद सोहै।
किधौं पद्म के कोष पद्मा विमोहै॥१५७॥
कि सिंदूरशैलाग्र मैं सिद्ध-कन्या।
किधौं पद्मिनी सूर-संयुक्त धन्या॥
सरोजासना है मनौ चारु वानी।
जपा पुष्प के बीच बैठी भवानी॥१५८॥
मनौ औपधी वृद मैं रोहिणी सी।
कि दिग्दाह मैं देखिए योगिनी सी॥
धरापुत्र ज्यो स्वर्ण माला प्रकासै।
मनौ ज्योति सी तच्छकाभोग' भासै॥१५९॥

[सुरेद्रवज्रा छद]

आसावरी माणिक कुभ शोभै अशोकलग्ना वनदेवता सी।
पालाशमाला कुसुमालि मध्ये वसतलक्ष्मी शुभलक्षणा सी॥



(१) तच्छकाभोग ( तच्छक+श्राभोग )= तक्षक नामक सर्प का फण।