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[मदनमनोरमा छद]
भुव भारहि सयुत राकस को
गण जाइ रसातल मैं अनुराग्यो।
जग मैं जय शब्द समेतिहिं केसव
राज विभीषन के सिर जाग्यो।
मय दानव नंदिनि के सुख सो
मिलि कैसिय के हिय को दुख भाग्यो।
सुर दु दुभी सीस गजा', सर राम को
रावन के सिर साथहि लाग्यो॥१४९॥
[विजय छद]
मदोदरी--जीति लिये दिगपाल, सची के
उसासन देवनदी सब सूकी।
बासरहू निसि देवन की,
नर देवन की रहै सपति ढूकी।
तीनहुँ लोकन की तरुनीन
की बारी बँधी हुती दड दुहू की।
सेवत स्वान सृगाल सौ रावन
सोवत सेज परे अव भू की॥१५॥
[तारक छद]
राम--अब जाहु विभीषन रावन लैकै।
सकलत्र सबधु क्रिया सब कैकै॥
(१) गजा = चोब ( नगाडा बजाने की )।