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द्रोणगिरि-आनयन
लसै ओषधी चारु भो व्योमचारी।
कहैं देखि यों देव देवाधिकारी॥
पुरी भौम की सी लिये शीश राजै।
महामगलार्थी हनूमत गाजै॥७८॥
लगी शक्ति रामानुजै रामसाथी।
जडै है गये ज्यौ गिरै हेम हाथी॥
तिन्हैं ज्याइबे को सुनौ प्रेमपाली।
चल्यो ज्वालमालीहिं लै कीर्तिमाली॥७९॥
किधौं प्रातही काल जी में विचारयो।
चल्यो अ शुलै अंशुमाली सँहारयो॥
किधौ जात ज्वालामुखी जोर लीन्हें।
महामृत्यु जामैं मिटै होम कीन्हें॥८०॥
बिना पत्र हैं यत्र पालाश फूले।
रमै कोकिलाली भ्रमैं भौर भूले॥
सदान द रामैं महान द को लै।
हनूमत आये बसतै मना लै॥८१॥

[मोटनक छंद]

ठाढे भये लक्ष्मण मूरि छिये।
दूनी शुभ शोभ शरीर लिये॥
कोदड लिये यह बात ररै।
लकेश न जीवत जाइ घरै॥८२॥