पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१७९

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[दो०] अंगद रावन को मुकुट, लेकरि उड्यो सुजान।
मनौ चल्यो यमलोक कों, दससिर को प्रस्थान॥४४॥
अगद लै वा मुकुट कों, परे राम के पाइ।
राम विभीषन के सिरसि, भूषित कियो बनाइ॥४५।।

लंकावरोध
[पद्धटिका छद]

दिशि दच्छिन अगढ, पूर्व नील।
पुनि हनूमत पश्चिम सुशील॥
दिशि उत्तर लक्ष्मण सहित राम।
सुग्रीव मध्य कीन्हे विराम॥४६॥
सँग युथप यूथप बल विलास।
पुर फिरत विभीषन आस पास॥
निसि-बासर सब को लेत सोधु।
यहि भॉति भयो लका-निरोधु॥४७॥
तब रावन सुनि लका-निरोध।
उपज्यो तन मन अति परम क्रोध॥
राख्यो प्रहस्त हठि पूर्व पौरि।
दच्छिनहिं महोदर गयो दौरि॥४८॥
भयो इद्रजीत पश्चिम दुवार।
है उत्तर रावन बल उदार॥
कियौ विरूपाच्छ थित मध्यदेस।
करै नारांतक चहुँधा प्रवेस॥४९॥