पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१७४

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आनि कै पाँ परौ देस लै, कोस लै
आसुहीं ईस-सीता चलें ओक को॥२३॥
रावण--लोक लोकेस स्यौं सोचि ब्रह्मा रचे
आपनी आपनी सीव सो सो रहै।
चारि बाहैं धरे विष्णु रच्छा करै,
बात साँची यहै वेदवाणी कहै॥
ताहि भ्रूभंग ही देव देवेस स्यौं-
विष्णु ब्रह्मादि दै रुद्रजू सहरै।
ताहि हैं। छाँडि के पायँ काके परौ
आजु ससार तौ पायँ मेरै परै॥२४॥

[मदिरा छौंद]

'राम को काम कहा?' 'रिपु जीतहिं'
'कौन कबै रिपु जीत्यो कहाँ?'
'बालि बली', 'छल सो', 'भृगुन दन
गर्व हर्यो', 'द्विज दीन महा॥'
'दीन सो क्यौ? छिति छत्र हत्यो
बिन प्राणनि हैहयराज कियो।'
'हैहय कौन ?' 'वहै, बिसर्यो? जिन
खेलत ही तुम्है बॉधि लियो'॥२५॥

अगद- [विजय छ द]

सिंधु तर्यो उनको बनरा, तुम पै धनुरेख गई न तरी।
बाँध्योइ बाँधत सो न बँध्यो उन वारिधि बाँधि कै बाट करी॥