'कौन के सुत?' 'बालि के' 'वह कौन बालि' न 'जानिए?-
काँख चापि तुम्हे जो सागर सात न्हात बखानिए॥'
'है कहाँ वह वीर?' अगद 'देवलोक बताइयो'।
'क्यो गयो?' 'रघुनाथ-बान-बिमान बैठि सिधाइयो'॥२०॥
'लकनायक को?' 'विभीषण, देव-दूषण को दहै?"
'मोहि जीवत होहिं क्यों?' 'जग तोहि जीवत को कहै?"
'मोहिं को जग मारिहै?' दुर्बुद्धि तेरिय जानिए।'
'कौन बात पठाइयो कहि वीर वेगि बखानिए'॥२१॥
अगद--[सवैया]
श्री रघुनाथ कौ वानर केसव आयौ हो एकु, न काहू हयौ जू।
सागर को मद झारि, चिकारि त्रिकूट के देह बिहार छयौ जू॥
सीय निहारि सँहारि कै राच्छस सोक असोक बनीहि दयौ जू।
अच्छकुमारहिं मारिकै, लकहिं जारि के, नीकेहि जात भयो जू॥२२॥
[गगोदक छद]
राम राजान के राज आये इहाँ
धाम तेरे महाभाग जागे अबै।
देवि मदोदरी कुभकर्णादि दै
मित्र मत्री जिते पूँछि देखौ सवै॥
राखिजै जाति को, भॉति' को वंश को
साधिजे लोक मैं लोक पर्लोक को।
(१) भॉति = आबरू।