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(१११)
राम-विरह-वर्णन
[दडक]
दीरघ दरीन बसै केसौदास केसरी ज्यौं,
केसरी कौं देखि वन करी ज्यौं कैंपत हैं।
वासर की सपति उलूक ज्यौं न चितवत,
चकवा ज्यौं चद चितै चौगुनो चँपत है॥
केका सुनि व्याल ज्यौं, बिलात जात घनस्याम,
घनन की घोरनि जवासो ज्यौं तपत हैं।
भौंर ज्यौं भँवत वन, योगी ज्यौं जगत रैनि,
साकत ज्यौं राम नाम तेरोई जपत हैं॥४९॥
[दो०] दुख देखे सुख होहिगो सुक्ख न दुःख विहीन।
जैसे तपसी तप तपे होत परमपद लीन॥५०॥
बरषा वैभव देखिकै देखी सरद सकाम।
जैसे रन मैं काल भट भेटि, भेटियत बाम॥५
दुःख देखिकै देखिहौं तव मुख आनँद-कद।
तपन ताप तपि द्यौस निसि जैसे सीतल चद॥५२॥
अपनी दसा कहा कहौ दीप दसा सी देह।
जरत जाति बासर निसा केसव सहित सनेह॥५३॥
सुगति सुकेसि सुनैनि सुनि सुमुखि सुदति सुस्रोनि।
दरसावैगो बेगिही तुमको सरसिजयोनि॥५४॥