राजा वीरसिंहदेव को इस बात का खेद था कि काल के प्रभाव से यह विद्वन्मंडली छिन्न हो जायगी। किसी ने, उन्हें
- बतलाया कि यदि एक बृहद् यज्ञ करके राजा समेत सारी
विद्वन्मडली उसमे भस्म हो जाय तो प्रेतयोनि मे अन त काल तक उनका साथ बना रहेगा। कहते हैं, राजा वीरसिंह ने यही किया। ओडछे मे वह यज्ञस्थल अब तक बतलाया जाता है। नहीं कह सकते कि इस कथानक मे सत्य का अश कितना है। यदि सब लोगों का किसी यज्ञ मे जल मरना सत्य है तो इसका किसी यज्ञ के समय आकस्मिक । दुर्घटना का परिणाम होना अधिक सभव है। ऊपर की दोनों घटनाएँ याद और नहीं तो इतना अवश्य सूचित करती हैं कि गोसाईजी के रहते ही केशवदासजी की मृत्यु हो गई थी। तुलसीदासजी की मृत्यु स. १६८० मे हुई थी। और केशव की अतिम रचना जहाँगीर-जस-चद्रिका में निर्माण-काल सं० १६६९ दिया हुआ है। इससे निश्चय है कि केशवदास की मृत्यु स. १६६९ और १६८० के बीच किसी समय मे हुई होगी। कुछ विद्वानों के अनुमान से सवत् १६७४ उनका मृत्यु-सवत् होना चाहिए। ओड़छे के व्यासपुरा मुहल्ले मे इमली के एक बहुत पुराने पेड के निकट एक खंडहर है। कहते है, यही केशवदास का मकान था। इमली का पेड़ भी उन्हीं का बतलाया जाता है।