• [घनाक्षरी] भाहै सुरचाप चारु प्रमुदित पयोधर', भूखन जरायः जोति तड़ित रलाई है। दूरि करी सुख मुख सुखमा शशी की, नैन अमल कमल दल दलित निकाई है ॥ - केसौदास प्रबल करेनुका गमनहर, मुकुत सु हसक सबद सुखदाई है। अ बर-बलित मति माहै नीलकठ" जू की, कालिका कि बरखा हरखि हिय आई है ।। ३.. वर्णत केसव सकल कवि, विषम गाढ़ तम सृष्टि । 31 कुपुरुष सेवा ज्यों भई, सतत मिथ्या दृष्टि ।। ३५ ।। [चंद्रकला छ द] कल-हस, कलानिधि, खंजन, कज, कछू दिन केसव देखि जिये। गति, आनन, लोचन, पायन के अनुरूपक से मन मानि लिये ॥ (१) प्रमुदित पयोधर = उनये हुए बादल; उन्नत स्तन । (२) भूखन जराय = जड़ाऊ गहने, (भू-ख-नजराय) पृथ्वी और आकाश मे दिखाई देती हैं। (३) नैन अमल = स्वच्छ ऑखे (ने न अमल ) नदियाँ निर्मल नहीं हैं। (४) निकाई - सु दरता, काई-रहित होना। (५) प्रबल-करेनुका-गमनहर - मत्तगजगामिनी; (प्रबल +क+रेनुका +गमनहर ) धूल और आवागमन रोकनेवाला प्रबल जल। (६) - मुकुत सु हसक सबद = हसो के शब्दों से मुक्त, बिछुओ का स्वच्छद शब्द। (७) अबर-बलित = घिरा हुआ आकाश, वस्त्र पहने हुए। (८) नीलकठ = मयूर, महादेव ।
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