पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१४१

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राम लक्ष्मण नाम सयुत सूरवश बखानिए ।
रावरे वन कौन है। क्यहि काज क्यो पहिचानिए ॥५॥
[ दोहा ]
हनुमान्--या गिरि पर सुग्रीव नृप, ता सँग मत्री चारि ।
वानर लयी छडाइ तिय, दीन्हो बालि निकारि ॥६॥
[ दोधक छद ]
वा कहँ जौ अपना करि जानौ ।
मारहु बालि विनै यह मानौ ।।
राज देहु दै वाकी तिया कौं ।
तो हम देहिं बताय मिया कौ ॥७॥
राम-सुग्रीव-मिताई
दो०] उठे राज सुग्रीव तब, तन मन अति सुख पाइ ।
सीताजू के पट-सहित, नूपुर दीन्हे आइ ॥८॥
[ दडक ]
राम--पजर की खजरीट, नैनन को, किधौं मीन ।
मानस को केशोदास जलु है कि जारु है।
अग को कि अ गराग, गेडुआ की गलसुई।
किधौं कोट जीव ही को उर को कि हारु है ।
बधन हमारौ कामकेलि को, कि ताडिबे को
ताजना, विचार को की चमर बिचारु है।


(१) गेंडुआ = तकिया । (२) गलसुई = गाल के नीचे लगाने का छोटा कोमल तकिया। (३) ताजनो (फा० ताज़ियाना) = कोड़ा ।