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किष्किंधा कांड
[ दो० ] ऋष्यमूक पर्वत गये, केशव श्री रघुनाथ ।
देखे वानर पच विभु, मानो दक्षिण हाथ ।। १ ।।
[ कुसुमविचित्रा छद ]
तब कपि राजा रघुपति देखे ।
मन नर-नारायण सम लेखे ॥
द्विज वपु धरि तहँ हनुमत आये ।
बहु विधि आशिष दै मन भाये ।। २ ॥
राम-हनुमान्-संवाद
हनुमान् – सब विधि रूरे वन मह को है। ?
तन मन सूरे मनमथ माहौ ।
शिरसि जटा वकला वपुधारी ।
हरिहर मानहुँ विपिनविहारी ॥ ३ ॥
परम वियोगी सम रस भीने ।
तन मन एकै युग तन कीने ॥
तुम को है। का लगि वन आये ।
केहि कुल हौ कौने पुनि जाये ॥ ४ ।।'
[चचरी छ द]
राम--पुत्र श्री दशरथ के वन राज सासन आइयो।
सीय सु दरि सग ही बिछुरी सो सोध न पाइयो ।।