पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१२५

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अघ-ओघ की बेरी कटी विकटी, निकटी प्रकटी गुरुज्ञान गटी । चहुंओरन नाचति मुक्तिनटी, गुण धूरजटी वनपचवटी ॥१८॥ ..[हाकलिका छद ।। शोभत दडक की रुचि बनी । भाँतिन भॉतिन सु दर घनी ।। 'सेव बडे नृप की जनु लसै । श्रीफल भूरि भाव जहँ बसै ॥१९॥ बेर भयानक सी अति लगै । अर्क-समूह जहाँ जगमगै ॥1 नैनन को बहुरूपन ग्रस । श्रीहरि की जनु मूरति लसै ॥२०॥ [ दोधक छ द ) राम-पाडव की प्रतिमा सम लेखा। अर्जुन भीम महामति देखा ।। है सुभगा सम दीपति पूरी। सिंदुर की तिलकावलि रूरी ॥२१॥ राजति है यह ज्यौ कुलकन्या । धाइ विराजति है सँग धन्या ।। केलि-थली जनु श्री गिरिजा की। शोभ धरे शितकठ ३ प्रभा की ॥२२॥ गोदावरी-वर्णन [मनहरन छद] अति निकट गोदावरी पाप-सहारिणी । चल तरग तुगावली चारु सचारिणी। (१) गटी = गठरी। (२) भीम = अम्लबेतस, भीमसेन । (३) शितकट = मयूर, महादेव । । 31-1-1-1