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( ७० ) [ दो०] यह कहि के भागीरथी, केसव भई अदृष्ट । भरत कह्यो तब राम सौं, देहु पादुका इष्ट ॥७८॥ भरत का लौटना [उपेद्रवज्रा छद] चले बली पावन पादुका है। प्रदक्षिणा राम सियाहु को दै॥ गये ते नदीपुर बास कीनौ । सबधु श्रीरामहि चित्त दीनौ ॥ ७९ ॥ [ दो०] केसव भरतहि आदि दै, सकल नगर के लोग । वन समान घर घर बसे, सकल विगत संभोग ॥८॥ (इति अयोध्या कांड)