पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/११८

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( ६८ ) [ दोधक छंद] श्रीराम-राज दियो हमको बन करो। राज दियो तुमको अब पूरो ।। सेो हमहूँ तुमहूँ मिलि कीजै । बाप को बोलु न नेकहु छीजै ।।६९|| [दो०] राजा को अरु बाप कौ, बचन न मेटै कोइ । जौ न मानिए भरत तौ, मारे को फल होइ ॥७०।। [स्वागता छंद] भरत-मद्यपानरत स्त्रीजित होई। सन्निपातयुत बातुल जाई ।। देखि देखि तिनको सब भागै । तासु बात हति, पाप न लागै ॥७१॥ "ईशर ईश' जगदीश बखान्यो। } ( वेदवाक्य बल ते पहिचान्यो । 10 343(ताहि मेटि हठिकै रहिही जो।। गग तीर तन को तजिहों तौ ॥७२॥ .[दो०] मौन गही यह बात कहि, छोड्यौ सबै विकल्प। भरत जाइ भागीरथी-तीर करयौ सकल्प ||७|| (१) ईश = विष्णु। (२) ईश = महादेव । (३) जग- - - . . . | m - निती। /u निकला-विचार ।