पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/११२

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( ६२ ) भरत-कौशल्या-वार्ता [ तोटक छंद] तब पायन जाइ भरत्थ परे । उन भेटि उठाइ कै अ क भरे ।। सिर सू घिविलोकि बलाइ लयी। सुत तो बिन या विपरीत भयी ॥४१॥ [ तारक छंद] भरत-सुनु मातु भयी यह बात अनैसी IAS- जु करी सुत भ -विनाशिनि जैसी॥ यह बात भयी अब जानत जाके । . द्विज दोष परै सिगरे सिर ताके ॥४२॥ जिनके रघुनाथ-विरोध बसै जू । मठधारिन के तिन पाप ग्रसैं जू ।। रस राम रस्यौ मन नाहिन जाकौ । रन मैं नित होइ पराजय ताकौ ॥४३॥ कौशल्या-जनि सौंह करो तुम पुत्र सयाने । अति साधुचरित्र तुम्हें हम जाने ॥ सबकौं सब काल सदा सुखदाई। जिय जानति हौं सुत ज्यौं रघुराई ।। ४४॥