ऊपर से आनेवाले प्रकाश-किरण इस नली के अग्र भागवाले
काँच पर प्रतिफलित हो कर नली की राह से पोत के भीतर
चले जाते हैं। वहाँ कागज़ का एक तख्ता फैला रहता है।
उस पर समुद्र-तल के आसमंतद्भाग का प्रतिबिम्ब पड़ता है।
उससे यह साफ मालूम हो जाता है कि जिस जहाज़ पर टार-
पीडो मारना है, वह कहाँ पर है। यह पेरिओस्कोप मानों इस
धूम्रपोत की आँख है। टारपीडो मारने का काम भी दबा कर
रखी गई हवा से किया जाता है। टारपीडो छोड़ने के बाद,
अथवा आवश्यकता होने पर यो भी, धूम्रपोत को पानी के
ऊपर लाने के लिए, भीतर भरे हुए पानी के पीपों को खाली
करना पड़ता है। वह सारा पानी पम्पों से बाहर निकाल दिया
जाता है। यह काम भी दबा कर रक्खी गई हवा की सहायता
से होता है।
लड़ाकू जहाज़ पानी के ऊपर रहता है, सब-मरीन धूम्र-
पोत पानी के भीतर। इस दशा में टारपीडो को इस तरह
छोड़ना कि वह ठीक निशाने पर लगे, बड़ा कठिन काम है।
बहुत सोच समझ कर और हिसाब लगा कर भीतर से टार-
पीडो की वार की जाती है। पेरिओस्कोप से जहाज़ का
स्थान तो जरूर मालूम हो जाता है, परन्तु ठीक उसी जगह
पर टारपीडो मारने से वह जहाज पर नहीं लगती। जहाज़
समुद्र के ऊपर रहता है और चलता जाता है। उसका वेग
समुद्रान्तर्गामिनी सब-मरीन के वेग की अपेक्षा कहीं अधिक
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