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बारह आदमी रहते हैं। उनके श्वासोच्छ्वास के लिए निर्मल वायु दरकार होती है। ऐसी वायु बड़े बड़े पात्रों में खूब दबाकर भरी जाती है। वे पात्र पोत के भीतर एक स्थान-विशेष में रक्खे रहते हैं । उन्हीं से थोड़ी थोड़ी वायु बाहर निकला करती है। वही श्वासोच्छ्वास के काम आती है। जो वायु श्वास से खराब हो जाती है, उसे पम्पों में भर कर बाहर समुद्र के पानी में निकाल देते हैं। यह व्यवस्था बड़ी चतुरता और खूब समझ बूझ कर की जाती है। तथापि ऐसी बन्द जगह में रहने की आदत डालने के लिए खलासियों को बहुत दिन तक वहाँ रहना पड़ता है।

पानी के भीतर चलनेवाले इन धूम्रपोतों का मुख्य काम यह होता है कि लड़ाई के समय शत्रु के लड़ाकू जहाज़ों पर टारपीडो नामक एक भयङ्कर नौका की टक्कर मार कर ये उन्हें उड़ा देते हैं। अच्छा, तो ये धूम्रपोत लड़ाई के समय पानी के भीतर चलते हैं और लड़ाकू जहाज़ पानी के ऊपर। फिर इन को यह कैसे मालूम हो जाता है कि शत्रु का जहाज कहाँ पर है ? इसके लिए एक बड़ी ही विलक्षण युक्ति निकाली गई है। वह युक्ति पेंरिओस्कोप नामक एक यंत्र का आविष्कार है। धूम्रपोत की पीठ पर एक लम्बी नली रहती है। वह खड़ी लगी रहती है। उसके ऊपर एक काँच रहता है। पानी के भीतर धूम्रपोत के चले जाने पर भी इस नली का अग्र भाग पानी के ऊपर निकला रहता है। आस-पास के पदार्थ-समुदाय के